क्या FRA- FCA कर रहा है देवभूमि हिमाचल की प्राकृतिक की रक्षा, या विकास की राह में रोड़ा ?

हिमाचल की पहाडियों में आजकल कई जगह आग लगने की घटनाएं सामने आ रही हैं, लेकिन देवभूमि में उठती इन आग की लपटों से जहां वन विभाग का गला सूख रहा है कि इन घटनों में काबू कैसे पाया जाए, उधर दूसरी और सरकार को भी चिंता सता रही है - उपर से गरमी का मौसम और चुनावी वर्ष होने के चलते सियासत भी खूब गरमा रही है. और गर्मी की मौसम में सियासी फीजा बदल रही है. भाजपा सरकार के नेता विपक्ष के आरोपों को सिरे से नकारते हुए कहते हैं कि हमने जो भी घोषणा पत्र में वादे किए हैं वो सारे ही पूरे किए हैं- पर विपक्ष कहता है कि सरकार ने कोई वादा पूरा नहीं किया - और कोई विकास भी नहीं हुआ है. विकास की जब भी बात आती है तब हिमाचल सरकार को लंबित पड़े प्रोजेक्टों कि तरफ वो ध्यान ले जाती है. फिर सरकार का ध्यान शायद एफ आर ए औऱ एफ सी ए की तरफ जाता है, क्योंकि अभी भी सूत्र कहते हैं कि कई प्रोजेक्ट हैं जो इसकी वजह से पूरे नहीं हो पाए हैं। 

अब सवाल उठता है कि क्या सरकार लंबित पड़े प्रोजेक्टों को लेकर यह कहेगी की मंजूरी नहीं मिली - जिसकी वजह से विकास के पथ पर रोडा आ गया - वैसे हिमाचल की वर्तमान सरकार का हैशटैग है- शिखर की और हिमाचल , अब ऐसे में सवाल उठता है क्या एफो.सी.ए. और एफ.आर.ए. सरकार के विकास करवाने की राह में रोडा है , अगर है तो हटता क्यों नहीं और अगर हटता है तब इससे नुक्सान क्या होगा।  और इस नुक्सान से बचने के लिए कोई राह तो होगा----- ऐसे कई सवाल हैं जो हम सबके जहन में हैं, लेकिन सरकार के जहन की सूत्रों के हवाले से माने तो सरकार एक बार भी इसी को लेकर जहां केंद्र सरकार से गुहार लगाने की तैयारी में है तो दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने का भी मन बना रही है. 

अब सवाल यह उठता है कि आखिरकार यह एफ.सी.ए. और एफ.आर.ए. है क्या - जो नौबत कोर्ट तक जाने की पड़ रही है , लेकिन यह पहली दफा नहीं है इससे पहले भी कई प्रोजेक्टों की मंजूरी के लिए सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई गई है. अब आपको बता दें कि केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा मंजूर मामलों में अधिकतर इलैक्ट्रिक प्रोजैक्ट, सड़कें, कालेज, मॉडल स्कूल, हाईड्रो पावर प्रोजैक्ट, कार पार्किंग, आंगनबाड़ी, डिस्पैंसरी, पेयजल और  सिंचाई योजना, फेयर प्राइज शॉप, इलैक्ट्रिक , टैलीकॉम लाइन या कोई छोटे सिंचाई प्रोजैक्ट के बताए जाते हैं - जिनको बनाना है। सुप्रीम कोर्ट की हरी झंडी के बाद ही इन प्रोजैक्टों को धरातल पर उतारने का काम शुरू हो सकता है।

क्योंकि आपको भी पता है कि हिमाचल का 67 फीसदी एरिया कानूनी तौर पर वन क्षेत्र है। शेष भूमि पर रिहायश के साथ-साथ किसान खेतीबाड़ी-बागवानी करते हैं। इसलिए प्रदेश में विभिन्न विकास कार्यों के लिए अमूमन भूमि की कमी खलती है। एफ.सी.ए. और एफ.आर.ए. के बगैर कई योजनाएं तो एक-एक दशक से अटकी रहती हैं। इसका असर विभिन्न विकास कार्यों पर पड़ता है। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट कई मामलों में एफ.सी.ए. और कई प्रोजेक्टों के लिए एफ.आर.ए. के तहत मंजूरी प्रदान कर चुका है।

एफ आर ए औऱ एफ सी ए - एक ही सिक्के के दो पहूल कहें तो गलत नहीं होगा। अब एफ.आर.ए. लेने का प्रोसैस क्या होता है- वह आपको बताते हैं ? - एक हैक्टेयर तक भूमि के केस में एफ.आर.ए. दी जाती है। इसकी शक्तियां संबंधित डी.एफ.ओ. के पास हैं। इससे पहले किसी भी एफ.आर.ए. के केस में ग्राम सभा की मंजूरी अनिवार्य होती है। ग्राम सभा की मंजूरी के बाद रेंज ऑफिसर को अपनी रिपोर्ट डी.एफ.ओ. के सामने पेश करनी होती है। तत्पश्चात डी.एफ.ओ. एफ.आर.ए. देते हैं। एफ.आर.ए. का कोई मामला डी.एफ.ओ. द्वारा रिजैक्ट करने की सूरत में संबंधित जिलाधीश के सामने रखा जाता है।

अब एफ.सी.ए कैसे मिलती है वो भी बताते हैं. वन भूमि के गैर-वनीय इस्तेमाल के लिए फोरैस्ट कंजर्वेशन एक्ट-180 के तहत केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी आवश्यक होती है। सड़क, बिजली, स्कूल व पेयजल प्रोजैक्ट जैसे 13 चिन्हित कामों के लिए एफ.सी.ए. का केस देहरादून स्थित वन एवं पर्यावरण मुख्यालय को भेजा जाता है। यहां से सैद्धांतिक मंजूरी के वक्त कई शर्तें लगाई जाती हैं और काटे जाने वाले प्रस्तावित पेड़ का संबंधित विभाग को हर्जाना भरने के निर्देश दिए जाते हैं। तब जाकर फाइनल अपू्रवल मिलती है। अब देखने वाली बात होगी कि सरकार और कोर्ट इस पर क्या रुख अखितयार करता है,

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