बिहार विधानसभा चुनाव- इंतजार कीजिएगा पर्दा उठने वाला है!
अबकी दिवाली किसका निकलेगा दिवाला
बिहार में जब भी चुनाव आते हैं देश की नज़र पूरी हर राजनितिक हलचल पर बनी रहती है. जैसे अर्जुन मछली की आंख पर निशाना लगा रहा हो ठीक वैसे ही बिहार के चुनाव भी सियासतदानो और हुक्मरानो के साथ-साथ राजनीती में खास रूचि रखने वालों के लिए भी अहम् होते हैं। वैसे भी मुल्ख में कोरोना काल चला हुआ है ऐसे में टीवी और सोशल मीडिया के साथ-साथ पत्र -पत्रिकाओं में बिहार का सियासी हाल ब्यान हो रहा है। साल 2020 के पहले छः महीने महामारी का शिकार हो गए और आने वाले 6 महीने बिहार के सियासी बहार में रंगे नज़र आएंगे। पर अबकी दिवाली किसका दिवाला राजनितिक तौर पर निकलेगा ये काफी रौचक रहेगा। वैसे हर दल पहले ही तरह अपनी सरकार बनाने का दवा ठोक रहा है. और ठोके भी क्यों न - पांच साल इंतज़ार के बाद अब मौका मिला है लेकिन अबकी बार प्रचार और जनता से संवाद में कहीं न कहीं कोई न कई बदलाव जरूर होगा -क्यूंकि जाहिर है की करोना काल जारी है और अब जनता की बारी है। देश की सत्ताधारी पार्टी ऑनलाइन जनसंवाद में व्यस्त है और दूसरी पार्टियां अन्य मसलों पर व्यस्त है :- चाहे वह चीन विवाद हो या पेट्रोल-डीज़ल के दामों को लगती आग हो।
अबकी बार कहते हैं पार्टियां एक दूसरे से बाद में आरोप नहीं लगा पाएंगी क्योंकि अबकी बार सियासी माहौल के बीच चुनाव आयोग ने भी बीच का रास्ता निकाल लिया है. चुनाव आयोग बिहार विधानसभा चुनाव में ईवीएम एम-3 यानी इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन मार्क-3 का इस्तेमाल करने जा रहा है। बताया जाता है कि ईवीएम की चिप को सिर्फ एक बार ही प्रोग्राम किया जा सकता है और चिप के सॉफ्टवेयर को पढ़ा भी नहीं जा सकता है। इसे ना तो इंटनेट ना ही किसी नेटवर्क से जोड़ा जा सकता है, यहां तक कि इसे खोलने की कोशिश की गई तो यह मशीन छेड़छाड़ करने वाले की फोटो खींच कर खुद बंद हो जाएगी। इसके अलावा ईवीएम-3 में 384 प्रत्याशियों की जानकारी रखी जा सकती है।
राजनीति के माहिर खिलाड़ी अंदर बीमार, बाहर राबड़ी देवी की बढ़ी मुश्किलें
अक्तूबर-नवंबर में बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों में जुटा राष्ट्रीय जनता दल कई मोर्चों पर घिरता दिख रहा है. बिहार की राजनीति के माहिर खिलाड़ी और सूबे के सबसे बड़े सियासी परिवार के मुखिया लालू प्रसाद यादव इन दिनों बहुचर्चित चारा घोटाला मामले में झारखंड की रांची स्थित जेल में बंद हैं. वह मधुमेह और दिल की बीमारी से ग्रसित हैं. इसके अलावा उनकी किडनी भी ठीक से काम नहीं कर रही है. ऐसे में राजद कुनबे को मिल रहे लगातार झटकों के बीच महागठबंधन में शामिल प्रमुख घटक दलों हिंदुस्तान आवाम मोरचा (हम) के मुखिया जीतन राम मांझी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा की ओर से अपनी-अपनी मांगों को लेकर बनाये जा रहे दबाव से गठबंधन को संभाल कर रखना भी लालू परिवार के लिए बड़ी चुनौती बन गयी है.
राजद के विजेंद्र यादव, लालू प्रसाद के बेहद करीबी व पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने भी अपने पद से इस्तीफा दे चुके हैं.बीते दिनों में राजद के पांच पार्षदों ने भी पार्टी का दामन छोड़ कर जदयू का दामन थाम लिया है. पांच एमएलसी के पार्टी से इस्तीफा देकर जदयू में शामिल होने के बाद अब विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष राबड़ी देवी को अपना यह पद बचा पाना मुश्किल हो गया है. 75 सदस्यों वाली बिहार विधान परिषद में पांच विधान पार्षदों के इस्तीफे से पहले राजद की संख्या आठ थी, जो अब घट कर तीन हो गयी है. ऐसे में माना जा रहा है कि पूर्व सीए राबड़ी देवी के लिए नेता प्रतिपक्ष का पद बचाना काफी मुश्किल है. इन लोगों में संजय प्रसाद, कमरे आलम, राधाचरण सेठ, रणविजय सिंह और दिलीप राय शामिल हैं. इन्होंने राजद से इस्तीफा देकर जदयू की सदस्यता ली है. पार्टी छोड़नेवाले इन नेताओं ने अपने इस कदम के पीछे तेजस्वी यादव को वजह बताया. इन सभी का कहना है कि वे आरजेडी की मौजूदा वंशवाद की राजनीति और तेजस्वी यादव के नेतृत्व से असंतुष्ट थे.
मांझी और महागठबंधन में खींचतान
महागठबंधन में शामिल प्रमुख घटक दल हम के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व सीएम जीतनराम मांझी के हालिया बयानों ने राजद की परेशानी को बढ़ा दिया है. सियासी गलियारों में इस बात को लेकर चर्चा तेज है कि मांझी महागठबंधन छोड़ कर जदयू में दोबारा शामिल हो सकते हैं. हालांकि, बताया
जा रहा है कि आगामी विधानसभा चुनाव के पहले जीतनराम मांझी महागठबंधन का हिस्सा बने रहें या फिर पाला बदल कर एनडीए में शामिल होंगे, इसको लेकर वे किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंचे है. लेकिन, राजद की ओर से संतोषजनक जवाब नहीं मिलने को लेकर जीतन राम मांझी नाराज चल रहे हैं. मालूम हो कि जीतनराम मांझी ने एक बार फिर महागठबंधन में समन्वय समिति बनाने को लेकर अल्टीमेटम दिया है. चर्चा है कि राजद नेता तेजस्वी यादव की मुख्यमंत्री उम्मीदवारी को लेकर जीतनराम मांझी को ऐतराज है. वहीं, पिछले कुछ दिनों में कई बार महागठबंधन की समन्वय समिति बनाने की भी मांग करते रहे जीतनराम मांझी चाहते है कि बिहार चुनाव में सीट शेयरिंग से लेकर मुख्यमंत्री उम्मीदवार तक के मुद्दों पर गठबंधन में चर्चा की जानी चाहिए. इसी कड़ी में मांझी ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल से दिल्ली में मुलाकात की थी. इस दौरान भी उन्होंने महागठबंधन की समन्वय समिति बनाने का मुद्दा उठाया था.
बाबू ने भी छोड़ा लालू का ख्याल, बढ़ी बेचैनी
पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह के पार्टी उपाध्यक्ष के पद से इस्तीफा देने के बाद से लालू परिवार के भीतर मंथन तेज हो गया है. चर्चा गरम है कि 74 वर्षीय रघुवंश प्रसाद सिंह की नाराजगी के पीछे की सबसे बड़ी वजह लोजपा के पूर्व सांसद और बाहुबली नेता राम किशोर सिंह उर्फ रामा सिंह को राजद में शामिल होने संबंधी खबर बतायी जा रही है. किसी जमाने में लालू प्रसाद और रघुवंश प्रसाद सिंह के कट्टर विरोधी रहे रामा सिंह के राजद में शामिल किये जाने की खबरों से पार्टी के भीतर कई नेता नाराज बताये जा रहे हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में वैशाली सीट से रघुवंश प्रसाद को रामा सिंह ने करीब एक लाख से ज्यादा वोटों से शिकस्त दी थी. बता दें कि पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ रघुवंश प्रसाद सिंह ने कोरोना से जंग जीत ली है. अस्पताल सूत्रों एवं उनके करीबी लोगों के मुताबिक, हालांकि अभी वे उतने तरोताजा नहीं दिखे. बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी डॉ रघुवंश सिह से दूरभाष पर उनके स्वास्थ्य का हालचाल पूछा था.
लालू के लल्ला के सामने चुनौतियां
बता दें कि चारा घोटाले मामले में सजायाफ्ता राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव का सोशल मीडिया अकाउंट एक्टिव रहता है. जिसके माध्यम से वे बिहार सरकार और भाजपा-जदयू गठबंधन के खिलाफ हमला बोलते रहते हैं. वहीं, उनकी गैरमौजूदगी में तेजस्वी यादव को घरेलू और बाहरी स्तर पर कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. तेज प्रताप के तलाक मामले के बीच पार्टी में टिकट को लेकर जारी गुटबंदी ने राजद कुनबे की परेशानी को बढ़ा दिया है. अब देखनेवाली बात यह होगी कि बिहार चुनाव से पहले लालू प्रसाद के दोनों लाल तेजस्वी और तेज प्रताप अपनी बहन मीसा भारती और माता राबड़ी देवी के साथ मिलकर किसी तरह पार्टी के सामने खड़ी वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों का समाधान निकाल पाने में सफल होते हैं.
आया राम गया राम की रीत बरकरार
जब भी देश में कहीं भी चुनाव होते हैं आया राम गया राम की रीत बरकरार रहती है मतलब नेताओं का एक दल से दूसरे दल में शामिल होना और इस्तीफों का दौर जारी रहता है. ऐस में बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सूबे में सियासी पारा चढ़ने लगा है. पूर्व केद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह के पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद 27 जून शनिवार को राजद को एक और बड़ा झटका लगा है. इस वर्ष के अंत में होने वाले बि
हार चुनाव से पहले राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) को एक और झटका है. पूर्व विधायक विजेंद्र यादव ने राजद से इस्तीफा दे दिया है. विजेंद्र यादव को राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का काफी करीब माना जाता है.राजद से इस्तीफे के बाद पूर्व विधायक विजेंद्र यादव ने कहा कि पार्टी में उपेक्षा की वजह से उन्होंने यह निर्णय लिया है. किसी अन्य दल में शामिल होने के सवाल पर उन्होंन कहा कि अभी यह तय नहीं किया है. वहीं सियासी गलियारों में चल रही चर्चाओं के मुताबिक, आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी की ओर से टिकट मिलने को लेकर कोई ठोस आश्वासन नहीं मिलने से आहत विजेंद्र यादव ने इस्तीफा देने का फैसला लिया है. पूर्व विधायक विजेंद्र यादव पिछले करीब तीन दशक से राजद में थे. पिछले लोकसभा चुनाव में वे आरा लोकसभा क्षेत्र में राजद व भाकपा माले के संयोजक बनाये गए थे.वहीं अबके चुनावों में चुनाव प्रचार के लिए कौन सी पार्टी किसी प्रचारक को जनता के बीच उतारती है इसकी सूचि का भी इंतजार बड़ी ही बेसब्री से हो रहा है क्योंकि जब सियासी ब्यानबाजी शुरु होगी तभी बिहार का सियासी अखाड़ा सजेगा और धुरंधर अपने दल को विजयी बनाने के साथ सत्ता में आने के लिए एक दूसरी की जमकर खिल्ली भी उड़ाएंगे और साथ ही भेद भी खोलेंगे क्योंकि अब चुनाव आयोग के द्वारा जैसे ही चुनाव की तारीखों घोषित होंगी वैसे ही घोषणा पत्र के साथ-साथ कई हुक्मरानों की दबी बातों से पर्दा विरोधी उठाने शुरु कर देंगे. वैसे भी इन दिनों 2008 से 2014 तक की चर्चा में आया सृजन घोटाला भी खूब सियासी सृजन कर रहा है और कईयों पर इसके छीटें पड़ने के साथ दाग लगने वाले हैं.
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